1. पानी में पांच बत्तख तैर रहे थे। तट पर खड़ा आदमी मछली को खाना खिला रहा था। निषादराज भगवान की आरती कर रहे थे। भगवानजी उस पार जाना चाह रहे थे। बच्चे मुहल्लेवाले प्रजा लग रहे थे। कविता गाई जा रही थी। एक आदमी गाय को सानी-पानी दे रहा था। मेला लगा हुआ था। बच्चे को पानी-भगवानजी-मेले-बत्तख-मछलियों-गायों में से हरेक बहुत अच्छा लग रहा था। उसे मालूम नहीं होगा या जो भी हो, वह उस पानी को नदी कहना चाहता था। मैं उससे कहना चाहता था कि ‘नहीं’ तो वह ‘नहीं’ सुनना नहीं चाहता था। वह पानी के बारे में कुछ पुराना सुनना चाहता था। मैं पानी के भविष्य को लेकर परेशान होना चाहता था। वह मुझी को लेकर परेशान होना चाहता था। यह कहने में कि ‘भविष्य में पानी ख़त्म हो जायेगा’, पानी की बड़ी बर्बादी थी। पानी के ख़त्म होने से पहले ही पानी के ख़त्म होने की उदासी में मैं एक अतीत था। पानी के पुराने को जानने में बच्चे की दिलचस्पी पानी का भविष्य थी। कभी-कभी चीज़ें उल्टी दिखाई देती हैं। मैंने पानी को उल्टा करके देखा तो पानी सीधा था । नदी को उल्टा बहा देने से प्रदूषण की समस्या का क्या होगा सोचता हुआ मैं उल्टी गंगा बहाने वाला मुहावरा हो गया था। शहर भर के सीवेज को उल्टा बहा देने से क्या होगा? निपटना दूभर हो जायेगा और क्या? जिन शहरों के किनारे नदियाँ नहीं होतीं, जैसे बंगलोर, वहाँ के लोग क्या टट्टी-पेशाब नहीं करते? आप मान लीजिए कि आपके शहर से होकर कोई नदी नहीं गुज़रती, बस, उसमें मत विसर्जित कीजिए अपनी अशुचि। यह मानते ही कि बनारस के किनारे से नहीं बहती गंगा, गंगा बनारस के किनारे बहने लगेगी। उसकी अनुपस्थिति का यक़ीन ही उसकी उपस्थिति की उम्मीद है। मैं स्मृति की गंगा में नहाकर मुमुक्षु हो जाता हूँ । तुम एक शब्द लिखो साफ़ काग़ज़ पर गंगा। सुबह पाओगे कि वह काग़ज़ फिर से पेड़ हुआ जाता है।