पांच गंवई लोकोक्तियों, गंवई गीतों या लोकगीतों के बोल से जानिए कि लोकमानस में राम किसी तरह से पीढ़ियों से रचे बसे रहे हैं और रामजी पर आम जनमानस कितना विश्वास करता है, कितना आत्मीय रिश्ता रखता है, देवता भी मानता है, सखा भी और अपने घर के सदस्य जैसा भी.
1. रामजी के चिरईं रामजी के खेत
खा ले चिरइयां, भर भर पेट
गांव में गाया जानेवाला गीत, जिसमें मनुष्यों के भोजन या संसाधन पर दूसरे जीवों का भी हक है, इसका बोध कराया जाता है. इसका भाव होता है कि लोग चिड़ियों को कहते हैं कि सब राम का ही है. राम जी की ही चिरईं है, राम जी का ही खेत है इसलिए चिरईं पहले भर पेट खेत में खाएगी, तब दूसरे को मिलेगा.
2. रामे रामे रामे हो रामा,
रामेजी के नइया हो,
रामे लगइहें बेंड़ा पार नु ए राम
भोजपुरी लोकगायन में एक मशहूर कथागीत गायन की विधा है सोरठी, जिसका पूरा नाम सोरठी बिरजाभार भी है. इस सोरठी बिरजाभार में यह यह बोल गीत के आधार पंक्तियों की तरह होता है. इसका भाव होता है यह जो जीवन की नाव है, वह राम जी की ही कृपा से है और इस नाव का बेंड़ा राम जी ही पार लगाएंगे.
3. रामजी के माया, कहीं धूप कहीं छाया
राम को लेकर समाज में एक अलग विश्वास रहा है. जीवन में दुख आने के बाद, लोग कहते हैं कि सब राम जी की माया है और इसके लिए इस मुहावरे का इस्तेमाल करते हैं कि यह रामजी की माया है कि कहीं धूप है तो कहीं छाया है. कहीं सुख है तो कहीं दुख है.
4. रामजी रामजी हंसुआ द
उ हंसुआ काहे के
धनवा कटावे के
उ धनवा काहे के
चउरा बनावे के
उ चउरा काहे के
भउजी के खियावे के
उ भउजी काहे के
लइका जनमावे के
यह गांव में खूब लोकप्रिय गीत रहा है, जिसमें धान की खेती के समय नयी बहुओं को चिढ़ाने के लिए या किसी गर्भवती स्त्री को भी सुनाया जाता था. यह एक प्रहसनी लोकोक्ति गीत है लेकिन इसमें भी रामजी का नाम पहले लिया जाता है.
5. राम नाम सत्य है
मृत्यु के समय में अर्थी जब निकलती है तो पीछे चलने वाले राम का ही स्मरण करते हुए चलते हैं.
(चंदन तिवारी बिहार की लोकगायिका हैं. बिहार लोकसंगीत गायन के लिए इन्हें भारत सरकार के संगीत नाटक अकादमी ने बिस्मिल्ला खान युवा पुरस्कार और बिहार सरकार ने बिहार कला सम्मान से सम्मानित किया है. )