रामचरितमानस में एक आदर्श राज्य का दिग्दर्शन होता है। रामराज्य एक आदर्शवादी प्रजातंत्र आत्मक व्यवस्था है जिसमें किसी प्रकार का शोषण और अत्याचार नहीं है सभी लोग एक दूसरे से स्नेह रखते हैं। राम राज्य में कोई किसी का शत्रु नहीं है।
रामराज बैठे त्रैलोका।हरषित भये गए सब सोका।।
बयरु न कर काहू सन कोई।राम प्रताप विषमता खोई।।
श्री रामचंद्र जी निष्काम और अनासक्त भाव से राज्य करते थे। उनमें कर्तव्य परायणता थी और वे मर्यादा के अनुरूप आचरण करते थे। जहां स्वयं रामचंद्र जी शासन करते थे उस नगर के वैभव का वर्णन नहीं किया जा सकता है।
रमानाथ जहँ राजा सो पुर बरनी की जाइ।अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सब छाइ।।
अयोध्या में सर्वत्र प्रसन्नता थी। वहां दुख और दरिद्रता का कोई नाम तक नहीं था। ना कोई अकाल मृत्यु को प्राप्त होता था और ना किसी को कोई पीड़ा होती थी। कारण कि सभी लोग अपने वर्ण और आश्रम के अनुरूप धर्म में तत्पर होकर वेद मार्ग पर चलते थे और आनंद प्राप्त करते थे। राम राज्य में दैहिक दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं सताते थे। राम के राज्य में राजनीति स्वार्थ से प्रेरित ना होकर प्रजा की भलाई के लिए थी। इसमें अधिनायकवाद की छाया मात्र भी नहीं थी। राम का राज्य मानव कल्याण के आदर्शों से युक्त एक ऐसा राज्य था जिसमें निस्वार्थ प्रजा की सेवा निष्पक्ष आदर्श न्याय व्यवस्था सुखी तथा समृद्ध शादी समाज व्यवस्था पाई जाती थी। स्वयं श्री रामचंद्र जी ने नगर वासियों की सभा में यह स्पष्ट घोषणा की: "भाइयों! यदि मैं कोई अनीश की बात कहूं तो तुम लोग निसंकोच मुझे रोक देना।"
वैदिक धर्म की रक्षा के लिए भगवान श्री राम का अवतार हुआ। मारीच रावण को समझाते हुए राघव के गुणों का वर्णन और रावण को सन्मार्ग दिखाने के संदर्भ में कहते हैं: रामो विग्रहवान धर्म: साधु: सत्यपराक्रमः।राजा सर्वस्य लोकस्य देवनामिव वासव:।
अर्थात: श्रीराम साक्षात विग्रह वान धर्म है। वह साधु और सत्य पराक्रमी है। जैसे इंद्र समस्त देवताओं के अधिपति हैं उसी प्रकार श्री राम समस्त जगत के राजा हैं।
संपूर्ण भारतीय समाज के लिए समान आदर्श के रूप में भगवान रामचंद्र को उत्तर से लेकर दक्षिण तक सब लोगों ने स्वीकार किया है। उत्तर में गुरु गोविंद सिंह जी ने राम कथा लिखी है पूर्व की ओर कृति वास रामायण चलती है। महाराष्ट्र में भावार्थ रामायण चलती है हिंदी भाषी क्षेत्र में कभी कुल चूड़ामणि गोस्वामी तुलसीदास जी की श्रीरामचरितमानस सर्वत्र प्रसिद्ध है। सुदूर दक्षिण में महाकवि कंबन द्वारा लिखित कंब रामायण अत्यंत भक्ति पूर्ण ग्रंथ है। मनुष्य के जीवन में आने वाली सभी संबंधों को पूर्ण एवं उत्तम रूप से निभाने की शिक्षा देने वाला प्रभु रामचंद्र के चरित्र के समान दूसरा कोई चरित्र नहीं है। वर्तमान समय में राम नीति की अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि पूरा विश्व घोर आपसी वैमनस्य और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। राजा की दिनचर्या कैसी होनी चाहिए या वर्तमान समय में जो पूरे विश्व में जिस प्रकार से शासन प्रणाली है, उसमें आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है, चाहे वह अमेरिका हो या चीन या ग्रेट ब्रिटेन ही क्यों ना हो क्योंकि इन्हीं देशों का अनुसरण लगभग सभी देश अपने शासन सत्ता को चलाने के लिए करते हैं। शासन सत्ता के बल मत्स्य न्याय के आधार पर नहीं चलती चलती है। हमारे देश का अप्रतिम शासन सत्ता का मानक रामराज्य ही है जिसकी नीव त्याग है।
महामना श्री मदन मोहन मालवीय के शब्दों में रामचरितमानस में हिंदू सभ्यता के जिस ऊंचे आदर्श का इतिहास है वह सदा पढ़ने और मनन करने योग्य है। रामायण को काव्य कहना उसका अपमान करना है। रामायण में हिंदू गृहस्थ जीवन का आदर्श बतलाया गया है। मैं चाहता हूं सब लोग प्रतिदिन नियम पूर्वक रामायण का पाठ करें और उसमें बतलाए हुए मार्ग पर चलकर हिंदू जाति को पुनः राम राज्य के सुख भोगने वाली बना दें।
गोस्वामी तुलसीदास जी की लोकप्रियता एवं रामचरितमानस के महत्व तथा उसके चिरस्थाई प्रभाव को देखकर विदेशी विद्वान भी तुलसी की ओर आकृष्ट हुए। रामकथा के प्रभाव से सोवियत संघ भी अछूता न रह सका। रूस के सुदूर उत्तर के विस्तृत भू-भाग साइबेरिया तक रामकथा का विस्तार हुआ। तिब्बती और खो तानी भाषा में लिखी राम कथा रूस में प्रसारित हुई जिसका समय तीसरी से नवी सदी तक बताया जाता है।
सुप्रसिद्ध सोवियत भारत विद्या विद् अल्सेई ब्रांनिकोव(1890-1952) ने 10 वर्ष से अधिक परिश्रम के पश्चात तुलसीकृत रामचरितमानस का रूसी भाषा में बंदोबस्त अनुवाद किया जिसे सोवियत संघ की विज्ञान अकादमी ने सन 1948 में प्रकाशित किया। लेकिन हाय वर्तमान रूस जिसने अपने पूर्वजों की इस अनुपम कृति का अनुकरण ना कर कर राक्षसी प्रवृत्ति का अनुकरण किया जिसका परिणाम यूक्रेन ही नहीं बल्कि पूरी मानव जाति झेल रही है रही है । अगर वर्तमान रूस के राष्ट्रपति जी ने थोड़ा सा भी तुलसीकृत रामचरितमानस का अध्ययन किया होता तो भगवान राम की जो शत्रु के प्रति नीति थी, जिसे श्री हनुमान जी महाराज जी ने और उनके बाद अंगद जी ने क्रियान्वित किया था ताकि भीषण युद्ध को रोका जा सके, लेकिन केवल तथाकथित विकास के मद के कारण सारा विश्व संकट में है।
यही तरीका हमारे वर्तमान भारत में भी है जहां निम्न वर्ग आय के लोग तथा मध्यमवर्ग आय के लोग आगामी खाद्य संकट से रूबरू होंगे क्योंकि यहां राम का नाम कालनेमि ले रहा है जो रावण का हित चाहने वाला है और रावण को गोस्वामी जी ने कहा है वह अहंकार का सूचक है। पूरा भारत वर्ष अहंकारी शासन सत्ता से चलाएं मान है जिसकी परिणति रावण नीति ही है ना कि राम नीति। इसका उपाय क्या है?
इस घोर संकट के समय सभी धर्मावलंबी जनों से यही प्रार्थना है कि कुछ समय के लिए राम नीति की अवधारणा को अपनाया जाए ताकि पूरे विश्व में शांति समृद्धि और एकता स्थापित हो।
(लेखक विश्वम्भर नाथ मिश्र संकट मोचन मंदिर के महंत हैं।)