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एक मौत की शव-परीक्षा

सुशांत सिंह की आत्महत्या बहुत से लोगों के लिए समझ से परे थी, इसलिए देश ने एक अजीब कीमियागिरी कर दिखाई: आत्महत्या को हत्या में बदल दिया।

डकैती के कथानक पर आधारित फिल्म ‘सोनचिरैया,’ जिसमें मनोज वाजपेई और सुशांत सिंह राजपूत मुख्य भूमिका में थे, 1 मार्च 2019 को रिलीज होती है। बढ़िया फिल्म होने के बावजूद यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम से गिरी, सिर्फ 9.7 करोड़ का व्यवसाय कर पाई। अगर हम Statista के फरवरी 2023 के एक अध्ययन की बात मानें तो भारत में सिनेमा टिकट की औसत कीमत 119 रूपए है, जिसके हिसाब से सिर्फ 8.1  लाख लोगों ने फिल्म को देखा, जो अंधेरी उपनगर की आबादी से भी कम है। इस समय मानो राजपूत का कोई वजूद ही नहीं था, इसके पंद्रह महीने बाद, 14 जून 2020 को, उसकी लाश, बांद्रा (पश्चिम) के उसके अपार्टमेंट में छत से झूलती हुई पाई गई। इसके अगले कुछ महीनों तक- जब चीन की फ़ौज हमारी सीमा की तरफ बढ़ रही थी, प्रवासी मजदूर मीलों मील चलकर घर लौट रहे थे, जिनमें से कई तो रास्ते में ही खेत रहे- पूरा देश एक हैरतअंगेज कीमियागिरी में लगा हुआ रहा: आत्महत्या को हत्या में बदल देना।

कंगना रनौत ने इस मुहिम का नेतृत्व किया, एक साथी कलाकार की मौत ने इस अभिनेत्री को वह दे दिया जिसकी तलाश उसे पूरी जिंदगी रही थी: एक बेजोड़ कहानी। एक दो-मिनट लम्बे वीडियो में रनौत ने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया कि राजपूत अवसाद का शिकार था, और एक सवाल पूछा: “ये सुसाइड था या प्लांड मर्डर था?” रनौत ने चिर-परिचित तर्क अपनाया: ‘आग के बिना धुंआ नहीं उठता.’ बॉलीवुड में भयंकर भाई-भतीजावाद और गुटबाजी व्याप्त है, और लम्बे समय से राजपूत के फिल्म उद्योग के प्रभावशाली खेमों - यशराज फिल्म्स और धर्म प्रोडक्शंस - से सम्बन्ध गड़बड़ होने की ख़बरें आती रही थीं। इसके बाद के कुछ हफ़्तों में यह मामला एक टीवी सीरियल की तरह फैलता गया, जिसमें नए नए एपिसोड, खलनायक और उप-कथानक उभर कर आए। सबसे पहले करण जौहर, संजय लीला भंसाली, शेखर सुमन (और उनके बेटे अध्ययन सुमन) जैसे लोग, फिर प्रशंसक, राजनीतिज्ञ, और टीवी चैनल।

इस नाटक में राजपूत के परिवार का पदार्पण जुलाई के अंत में हुआ, जब उन्होंने उसकी गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कराया। इसके पांच दिन बाद, 30 जुलाई को, सुब्रह्मण्यम स्वामी का एक ट्वीट आता है: “मुझे ऐसा क्यूँ लगता है कि सुशांत सिंह राजपूत की हत्या हुई थी।” इसके साथ एक तस्वीर थी जिसमें 26 ‘सबूतों ‘की सूची दी गई थी, जिसमें से 24 - जैसे ‘आँखें बाहर नहीं आई,’ सुशांत 14 जून की सुबह वीडियो गेम खेल रहा था, ‘दोस्तों के हाव-भाव/बॉडी लैंग्वेज’ - आदि तथाकथित रूप से हत्या की थ्योरी को सही ठहराते थे, जो व्यक्ति सुशांत नाम भी ठीक से नहीं लिख पा रहा था (‘Sushanth’ लिखा था) वह एक स्वघोषित जांच अधिकारी बन गया।

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लेकिन जब नामी-गिरामी लोगों - जिसमें कंगना और स्वामी के अलावा सोनू सूद और अक्षय कुमार शामिल थे - की रूचि इस विषय में कम होने लगी, “इस ‘आंदोलन’ की कमान ट्विटर पर इस मुद्दे को लेकर समर्पित एक सक्रिय समूह ने अपने हाथ में ले ली,” शोधकर्ता जॉयजीत पाल एवं अनिर्बान सेन ने 2022 के एक आलेख में कहा है- “वे इस मुद्दे पर नियमित रूप से बड़ी संख्या में पोस्ट करने लगे।” यानी जिन्न अब बोतल से बाहर आ गया था, और “SSRians” (एसएसआरियन्स) का जन्म हुआ, जो अपने कहे अनुसार #JusticeForSushant (सुशांत के लिए न्याय) चाहते थे। पाल और सेन के अनुसार  इनमें से कुछ तो “असली  फैन” थे, जो उस अभिनेता की मौत के पहले भी उसके बारे में पोस्ट करते थे, लेकिन बहुतों ने सुशांत के जाने के बाद ही इस “ट्विटर परिचर्चा” में भाग लेना शुरू किया, “संभवतया बड़ी हस्तियों की शुरुआती ट्वीटों से प्रभावित होकर।” 

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यहीं से ये कहानी बड़ी होने लगी, उसमें घुमाव और उबाल आने शुरू हुए। ज्यादातर आन्दोलनों की तरह, यहाँ भी लोगों को जुड़ाव की एक गहरी अनुभूति हुई। एसएसआरियंस (SSRians) इस बात पर जोर देते थे कि उनके नायक ने  एक छोटे शहर से आकर बॉलीवुड में सफलता की सीढ़ियां चढ़ी, लेकिन वह पैना, विनम्र और मिलनसार बना रहा। इस चित्रांकन में सही मात्रा में नायकत्व और बेचारगी शामिल थे। इसके अलावा, चूंकि राजपूत ने आत्महत्या के साथ कोई चिट्ठी नहीं छोड़ी थी, उसकी मौत ने अनेक अटकलों को जन्म दिया। एक वीरान, कोविड प्रभावित वर्ष में, अपने लिए पहचान और प्रयोजन ढूंढते हुए, एसएसआरियंस ने सुशांत में वही देखा जो वे देखना चाहते थे। इसीलिए यहाँ हत्या का दावा- जिसमें एक सुघड़, तार्किक लगता हुआ कथानक उभरता था- एकदम सटीक बैठा। एक ऑनलाइन भीड़ के लिए आत्महत्या वैसे भी बहुत जटिल मामला था, जिससे उस आंदोलन की आत्म-छवि को भी धक्का पहुँचता क्योंकि राजपूत जैसे सितारे - जिसके पास पैसे, शोहरत और प्रशंसकों की कोई कमी नहीं थी- के खुद को मार लेने का एक अर्थ यह भी लगाया जा सकता था कि प्रशंसक कुछ मायने नहीं रखते।

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बहुत सी ऑनलाइन पोस्ट यह दावा करते हुई की गई कि इस “हत्या” के पीछे के “रहस्य” का पर्दाफाश किया जाएगा, लेकिन उनका अपना ही पर्दाफाश साथ-साथ होता गया। रनौत की तरह ही इनमें राजपूत के मानसिक स्वास्थ्य से जुडी समस्याओं को खारिज किया गया था। यह पूछा गया कि एक सफल आदमी क्यों अपनी जान ले लेगा? यह पौरुष- इस वर्ग की मूलभूत पहचान- को भी चुनौती थी। अवसाद की सम्भावना को भी नकारकर, उन्होंने एक सवाल को ध्वस्त कर दिया जो उन्हें खुद चोट पहुंचा सकता था: अगर राजपूत जैसा इंसान भी आत्महत्या कर सकता था तो वे खुद कैसे - और क्यों - सुरक्षित थे? अंततः चक्रवर्ती के खिलाफ एफआईआर दाखिल होते ही, इस सस्ते थ्रिलर का निर्णायक पल आया: एक खलनायिका।

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 “लॉकडाउन के दौरान ट्विटर पर मेरी तथाकथित एसएसआर योद्धाओं से मुठभेड़ हुई,” फिल्मकर हंसल मेहता बताते हैं, “वे मुझे ट्रोल करते थे, क्योंकि तब मैं रिया के समर्थन में उतरा था। उन्हें मेरा एकमात्र जवाब होता था, अगर तुम उसके (सुशांत के) फैन होने का दम भरते हो, क्या तुमने सोनचिरैया देखी थी?” पाल, जिन्होंने डाटा पर आधारित शोध “एक अफवाह का कच्चा चिट्ठा: सोशल मीडिया और सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या” प्रकाशित किया है, कहते हैं कि इस कहानी के विस्फोटक बनाने में “कथात्मक (नैरेटिव) और ढांचागत” दोनों तरह के कारकों का हाथ था। कथानक के रूप में इसके बहुत से पहलू पहले से मौजूद थे। अपने ई-मेल में वे लिखते हैं कि बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद इनमें से एक था, और दूसरा अधिक विशिष्ट कोण हिंदी पट्टी के युवाओं से जुड़ा हुआ था कि वे “अपनी कड़ी मेहनत के बावजूद हमेशा बाहरी, पराया महसूस करते थे और अंततः पराजित होते थे।” तीसरे नैरेटिव में “उसके सिनेमाई व्यक्तित्व का उसकी असल जिंदगी घालमेल कर दिया गया था,” “पड़ोस के लड़के वाली उसकी छवि का मतलब यह लगाया जाता कि वह ड्रग्स ले ही नहीं सकता था,” और इसीलिए सारा दोष उसकी लिव-इन गर्लफ्रेंड, “एक बंगाली लड़की,” पर मढ़ दिया गया, जो इन “सभी घटनाओं के लिए जिम्मेदार थी।”

तथाकथित “मकसद” तलाश करने के अंधाधुंध अभियान - जिसमें दक्षिणपंथी ट्विटर खातों ने अग्रणी भूमिका निभाई - ने बॉलीवुड के खलनायकीकरण को आसान किया: कि वह हिन्दू-विरोधी है, लिबरलों से भरा हुआ है, वहाँ खानों का राज चलता है। लेकिन राजपूत का मुख्या आकर्षण उनके लिए सिनेमा के भीतर नहीं बल्कि बाहर था। एक तार्किक इंसान को एक गंभीर अभिनेता दिखाई देता है, लेकिन एक भीड़ को खांचे दिखते हैं: एक सवर्ण हिन्दू, एक पुरुष, एक मेरिटोरियस, साफ़ इमेज वाला, भूतपूर्व इंजीनियरिंग छात्र, जिसकी दिलचस्पी विज्ञान में थी। अगर एसएसआरियंस के मनोविज्ञान की तह में जाया जाए तो क्या मिलता है: जबरदस्त ढंग से एक पहचान की तलाश, झूठी ख़बरों एवं मनगढंत षड्यंत्रों से लगाव, ट्विटर की अल्गोरिदम को साध लेने की कला, यथास्थिति की आराधना, जमीनी सच्चाई से गहरा विलगाव, स्त्रीद्वेष आदि. क्या यह चिर-परिचित नहीं लगता? दरअसल यह “हिन्दू खतरे में है” का बॉलीवुड अध्याय था।

पाल कहते हैं कि शोध यह दिखाता है कि कुछ लोग (सुशांत के प्रशंसक जिन्होंने उसकी मौत के बारे में षड्यंत्र की कहानियां फैलाईं) “ऑनलाइन स्त्रीवाद-विरोधी आन्दोलनों, आर्यन खान को बदनाम करने की मुहिम, मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ अभियान आदि में शामिल थे। राजनेताओं ने इस समूह का एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है, और यह छोटा होते हुए भी बहुत संगठित रूप से बहुत ज्यादा शोर मचाने में सक्षम है।” भाजपा समर्थक समाचार चैनलों ने भी अपने खुद के मकसदों के आधार पर हंगामा किया और एसएसआरियंस को वैधता दिलाई। वे आगे कहते हैं कि हत्या की कहानी को ऐसे लोगों ने भी तूल दिया “जिनकी राजनैतिक हल्कों में पहचान थी या जो महत्वाकांक्षी थे,” जैसे नीलोत्पल मृणाल, जिसने रिपब्लिक टीवी तथा टाइम्स नाउ के जरिए खुद को राजपूत का “पारिवारिक मित्र” बताया, और मई 2021 के एक ट्वीट में इस आंदोलन की राजनैतिक निष्ठा जाहिर कर दी: “एसएसआरियंस नरेंद्र मोदी के साथ।” 

इस पूरी गाथा ने एक प्रतिभावान अभिनेता को एक हैशटैग बनाकर रख दिया। मेहता इसके असली दोषियों पर विचार करते हैं “राजपूत के मानसिक स्वास्थ्य की दिक्कतों को नकारना इसका संबसे खतरनाक परिणाम था। क्योंकि आप अवसाद से जूझ रहे व्यक्ति को सम्मान के साथ इलाज करवाने से हतोत्साहित कर रहे हैं. मैं खुद भी इससे जूझ चूका हूँ। ‘सिमरन’ फिल्म के दौरान और बाद एक ऐसा दौर आया था, इसने मुझे शारीरिक रूप से भी प्रभावित किया। किस्मत से, मैंने चिकित्सकीय सलाह ली, बल्कि इसका हौवा बनाने का परिणाम बहुत सी आत्महत्याओं के रूप में सामना आता है। सिर्फ इसे नकारने के लिए आप बहुत दर्द में जीते हैं, मुझे लगता है, खुद को इलाज करवाने का मौका न देना भी एक अपराध है।” 

(इक़बाल द्वारा अनुवादित)

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